नगर निगम की बढ़ती कर नीति: व्यापारियों पर बढ़ता बोझ, समाधान की तत्काल आवश्यकता

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लेखक: करण सहगल, प्रदेश उपाध्यक्ष, उद्योग एवं व्यापार प्रकोष्ठ, मध्यप्रदेश

भोपाल की सड़कों पर चलते हुए, जगह-जगह उखड़ी सड़कों और बदहाल इंफ्रास्ट्रक्चर से हर नागरिक को शहर की बदहाली साफ दिखाई देती है। हालाँकि, जब कोई नगर निगम के कार्यालय जाता है, तो एक और गंभीर समस्या उभर कर सामने आती है—प्रॉपर्टी टैक्स में बेतहाशा वृद्धि। शहर के विकास के नाम पर नगर निगम व्यापारियों और आम जनता पर टैक्स का बोझ डालता जा रहा है, जो न केवल समस्याएं पैदा कर रहा है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से विनाशकारी साबित हो रहा है।

हाल के वर्षों में, नगर निगम द्वारा बार-बार टैक्स में बढ़ोतरी का तर्क यह दिया जाता है कि कर्मचारियों की तनख्वाह देना मुश्किल हो रहा है, या मेंटेनेंस के खर्च में वृद्धि हो गई है। कई बार कहा जाता है कि लोग समय पर टैक्स नहीं भर रहे हैं। लेकिन, एक बुनियादी सवाल उठता है—क्या नगर निगम ने कभी सोचा है कि व्यापारियों की आय कैसे बढ़ाई जाए? आखिरकार, जब व्यापारी आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे, तो उन्हें टैक्स देने में कोई कठिनाई नहीं होगी।

आज स्थिति यह है कि जब व्यापारी नए व्यवसायों के लिए बिल्डिंग परमिट लेने जाते हैं, तो उन्हें अनेक प्रकार की कठिनाइयों और सरकारी प्रक्रियाओं के चक्कर में फँसना पड़ता है। इसके बाद, कमर्शियल मार्केट्स में व्यापारियों से ज़बरदस्ती टैक्स वसूला जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि यदि व्यापार में वृद्धि होगी, तो टैक्स संग्रहण स्वाभाविक रूप से बढ़ जाएगा।

व्यापारियों पर अत्यधिक टैक्स का बोझ डालना केवल उनकी समस्याओं को बढ़ाता है। एक मेहनतकश व्यापारी, जो अपनी ईमानदारी से कमाई करता है, उसे टैक्स देने में कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन जब उस पर करों का असहनीय बोझ डाल दिया जाता है, तो उसकी आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है। अंततः, वह कर्ज में डूबकर अपनी संपत्ति बेचने के लिए मजबूर हो सकता है। यह स्थिति इतनी विकट हो सकती है कि उसकी आर्थिक स्थिति नगर निगम जैसी हो जाएगी—जहां आज हम उसे वित्तीय संकट में घिरा हुआ देख रहे हैं।

आज भोपाल का व्यापारी वर्ग नगर निगम की नीतियों से बुरी तरह प्रभावित है। वे संपत्तियां, जिनसे पहले व्यापारियों को किराये के रूप में एक स्थिर आमदनी होती थी, अब उन पर कमर्शियल टैक्स, लाइसेंस फीस, प्रॉपर्टी टैक्स और कचरे के निपटारे के नाम पर तरह-तरह के टैक्स थोप दिए गए हैं। इससे न केवल व्यापारी अपने व्यापार को बनाए रखने में असमर्थ हो रहे हैं, बल्कि वे अपने परिवार की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं।

इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए, नगर निगम को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की सख्त आवश्यकता है। टैक्स बढ़ाने की बजाय, व्यापारियों की आय बढ़ाने के उपाय खोजे जाने चाहिए। व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक स्पष्ट रणनीति बनाई जानी चाहिए, जिसमें व्यापारियों को बिना किसी झंझट के काम करने का मौका मिले। जब व्यापारियों की आय बढ़ेगी, तब वे खुशी-खुशी टैक्स भरने को तैयार होंगे और अगर जरूरत पड़ी तो अधिक टैक्स देने में भी कोई संकोच नहीं करेंगे।

शहर का विकास और आर्थिक प्रगति तभी संभव हो पाएगी जब व्यापारियों को सही माहौल मिलेगा। नगर निगम को अपने मौजूदा रवैये को बदलते हुए, व्यापारियों को सहयोग देने की दिशा में काम करना चाहिए, ताकि दोनों—शहर और व्यापारी—विकसित हो सकें और एक सशक्त आर्थिक व्यवस्था का निर्माण हो सके।