मोहन के नेतृत्व में सुनहरे कल की ओर बढ़ता मप्र

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 रवि अवस्थी, भोपाल

बीते साल,11 दिसंबर को बीजेपी विधायक दल की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीसरी पंक्ति में बैठे डॉ मोहन यादव का नाम  बतौर  नए मुख्यमंत्री के तौर पर पुकारा। तब यह नाम ,सभी के लिए चौंकाने वाला था। स्वयं यादव भी अपने नाम का एलान सुन हतप्रभ रह गए।

यह पार्टी नेतृत्व का भरोसा था। इस पर सवाल कई उठे,लेकिन डॉ यादव ने महज एक साल के कार्यकाल में अपने विनम्र व हंसमुख  स्वभाव,सबको साथ लेकर चलने की कला व  इससे बढ़कर ,मप्र विकास के अपने जज्बे व जुनून से उन सभी  सवालों पर विराम लगा दिया।वह संगठन के भरोसे पर भी खरे उतरे। प्रदेश के समग्र विकास को लेकर उनकी दूर दृष्टि राज्य के सुनहरे कल की ओर इशारा कर रही है।

बीते डेढ़ दशक में कृषि वित्त पोषण,सिंचाई और अन्य सहायक योजनाओं के माध्यम से मध्य प्रदेश ‘बीमारू से एक प्रमुख कृषि उत्पादक राज्य में बदला। सड़क निर्माण, ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण को लेकर भी खूब काम हुए,लेकिन शहरी विकास और औद्योगिकीकरण में मप्र इस अवधि में अपेक्षित गति नहीं पा सका।
‘अपनी’ ही पूर्ववर्ती सरकार की इस कमी को मध्य प्रदेश के मौजूदा मुखिया डॉ मोहन यादव ने बखूबी समझा। उन्होंने पहले दिन से इस कमी को दूर करने की दिशा में काम शुरू किया। नतीजा सामने है,औद्योगिक निवेश हो या मेट्रो प्रोजेक्ट।दोनों ही मामलों में कामकाज ने रफ्तार पकड़ी है।
शहर विकास में बाधक बने बीआरटीएस कॉरिडोर  तोड़ने व अवैध कालोनियों को वैध न करने जैसे सख्त फैसले भी उन्होंने लिए। वहीं,दूसरी ओर राज्य पुनर्गठन आयोग बनाकर उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे।
 इसके जरिए वह नए जिलों की बढ़ती मांग पर रोक लगाने में सफल रहे। वहीं, प्रस्तावित नए परिसीमन से बदलने वाले भौगोलिक स्वरूप के साथ नए जिलों की अवधारणा को भी युक्तिसंगत बनाने की नींव भी उन्होंने रखी।

**  पुरानी के साथ नई सोच को भी गति
  सरकार बदलने पर नई योजनाओं को आगे बढ़ाना व पुरानी को बिसरा देना,एक सामान्य परिपाटी कही जा सकती है।

सीएम डॉ. यादव ने खुद को इससे बचाया। मुख्यमंत्री डॉ  यादव ने सामाजिक न्याय क्षेत्र की लाडली बहना जैसी योजना को ने केवल निरंतरता प्रदान की बल्कि कुछ मौके ऐसे भी आए जब तय तिथि से पहले उन्होंने सवा करोड़ से ज्यादा महिलाओं के खातों में योजना की राशि जमा की। सावन मास में बहनों को अतिरिक्त राशि देकर सरकार की महिला सशक्तिकरण वाली सोच को और मजबूत किया।

 वहीं, सिंचाई व्यवस्था में विस्तार,किसानों को समय पर  सम्मान निधि का वितरण,गांवों में आनंद उत्सव,पेसा एक्ट के जरिए पंचायतों को और अधिक अधिकार संपन्न बनाने की दिशा में उठाए गए कदम बताते हैं कि सरकार की प्राथमिकता में सिर्फ शहरी ही नहीं,ग्रामीण क्षेत्र का विकास भी शामिल है।

** समग्र विकास की अवधारणा को लगे पंख
डॉ यादव ने  ‘एक जिला -एक उत्पाद’ की  अवधारणा को ही आगे बढ़ाते हुए अंचलवार औद्योगिक विकास की श्रृंखलाबद्ध शुरुआत की। इसके बेहतर परिणाम भी सामने आए।  उज्जैन से शुरू हुआ यह सिलसिला आदिवासी बाहुल्य शहडोल तक अनवरत जारी है।

यह पहला मौका है जब नर्मदापुरम जैसे छोटे संभाग में भी 38 हजार करोड़ के औद्योगिक निवेश प्रस्तावों ने इस अंचल की औद्योगिक पहचान,रोजगार के अवसर व  समग्र विकास की अवधारणा को पंख लगाए। नर्मदापुरम ही नहीं,इससे पहले सागर व रीवा में हुई रीजनल  इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव ने बुंदेलखंड व बघेल खंड की धरती पर भी औद्योगिक विकास की उम्मीद जगाई।

औद्योगिक निवेश बढ़ाने को लेकर उन्होंने देश के चार प्रमुख महानगरों में रोड शो किए तो यूके व जर्मनी पहुंचकर विदेशी निवेशकों से भी बात की । वह यूके से बड़े निवेश प्रस्ताव लाने और जीआईएस में  उन्हें पार्टनर बनाने में भी सफल रहे।

**सुनहरे कल की आधारशिला

बाहरी निवेश के साथ प्रदेश के घरेलू उद्योग को संवारने का जतन भी साल भर में हुआ। पहला मौका है जब प्रदेश के एमएसएमई के लिए बजट में राशि बढ़ाई गई। इससे राज्य के सूक्ष्म,लघु व मध्यम उद्योगों में भी अपने दिन बहुरने की आस जगी।

ये उद्योग भी अब कंधे से कंधा मिलाकर प्रदेश के विकास व रोजगार की दिशा में साथ चलने को तैयार है। फरवरी में प्रस्तावित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से पहले ही साढ़े तीन लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिलना यह बताता है कि समग्र विकास की अवधारणा के साथ अपनाई गई प्रदेश के मुखिया की यह दूरदृष्टि मप्र के सुनहरे कल की आधारशिला है।

** रोजगार,राजस्व बढ़ाने की चिंता
     फ्रीबीज योजनाओं व बेहिसाब कर्ज के दुष्परिणाम से मप्र भी अछूता नहीं। ऐसे में ग्रामीण विकास व सामाजिक न्याय से जुड़ी योजनाओं की निरंतरता के साथ औद्योगिक व शहरी विकास को मूर्त रूप देना आसान नहीं है। पहले किस्म की योजनाएं जहां धन व्यय का जरिया हैं तो दूसरे किस्म के प्रयासों से तत्काल राजस्व पाने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती।

ऐसे में बीच का रास्ता निकालते हुए मोहन सरकार ने पर्यटन विकास,वाणिज्यिक कर प्रणाली की मजबूती व केंद्र प्रवर्तित योजनाओं,कार्यक्रमों के जरिए राजस्व बढ़ाने के जतन शुरू किए।

डॉ यादव ने वर्षों से लंबित पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक प्रोजेक्ट को शुरू कराने की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल की तो केन-बेतवा लिंक परियोजना की राह भी आसान बनाई। ये दो बड़े प्रोजेक्ट्स आने वाले वर्षों में मप्र की आर्थिक,सामाजिक दशा सुधारने में मददगार साबित होंगे।
**  सांस्कृतिक चेतना का प्रवाह
संस्कृति,विकास से जुड़ी होती है। यह तय करती है कि विकास को कैसे साकार किया जा सकता है। मनुष्य का विकास तभी होता है जब वह सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से पूर्ण होता है।

  प्रदेश के विकास में भी भौतिक संसाधनों के साथ अध्यात्म व संस्कृति का मजबूत होना  उतना ही जरूरी है। मुख्यमंत्री डॉ यादव ने इस बात को बखूबी समझा।बीते एक साल में प्रदेश में सनातन संस्कृति को मजबूत करने के साथ ही धार्मिक महत्व के स्थलों को संवारने का बीड़ा  उठाया तो धर्म व उत्सव के बहाने ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले कारकों को भी प्रतिबंधित किया।
 
       डॉ यादव सनातन संस्कृति के संरक्षण को लेकर मजबूती से खड़े भी दिखे। इसी क्रम में श्री राम वन गमन पथ के साथ श्रीकृष्ण पाथेय विकास के लिए काम शुरू किए गए तो धार्मिक स्थलों को पर्यटन विकास की दृष्टि से संवारने के काम को भी गति दी गई।  

      प्रदेश के हर शहर,कस्बे में गीता भवन की स्थापना, तीज-त्योहारों को जोर-शोर से मनाने की परंपरा को भी उन्होंने मजबूत किया।ताकि भावी पीढ़ी भी धर्म,अध्यात्म के महत्व को समझे,जाने। इसके इतर,प्रधानमंत्री की मंशा अनुरूप राष्ट्र के विकास में मप्र के योगदान को लेकर भी डॉ यादव सतत प्रयासरत हैं।

** आमजन से सरोकार
       अंत्योदय बीजेपी का मूल मंत्र है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने कर्म से इसे पूरी तरह आत्मसात किया। आरंभिक दिनों में ही वनोपज संग्राहकों के लिए बेहतर बोनस का वितरण कर उन्होंने समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के प्रति चिंता को उजागर किया तो आमजन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए भी कड़े कदम उठाए।

    समाधान ऑनलाइन की व्यवस्था को मजबूत करने की बात हो या राजस्व से जुड़े मामलों में ग्रामीण जनों को सहूलियत प्रदान करने का मामला। राजस्व महाअभियान,जनकल्याण पर्व जैसे आयोजन इसकी बानगी हैं। वह किसान कल्याण को लेकर चिंतित रहे तो महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी लाड़ली बहना योजना को निरंतरता प्रदान की।

      संबल के हितग्राही श्रमिकों की चिंता भी यादव करते हैं तो बंद पड़ी मिलों के श्रमिकों की भी उन्होंने सुध ली है। ग्रामीणों की समस्या को देखते हुए ग्रामीण परिवहन सेवा शुरू करने के फैसले का साहस भी उन्होंने दिखाया।

** गहरी प्रशासनिक समझ
  सरकार को चलाने के लिए ब्यूरोक्रेसी पर मजबूत पकड़ किसी भी मुख्यमंत्री के लिए पहली जरूरत है। डॉ यादव ने बीते एक साल में तीन सौ से अधिक आईएएस अधिकारियों को इधर से उधर कर ब्यूरोक्रेट्स की लगाम कसने का काम किया।

डॉ यादव ने अधिकारी,कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखा तो कामकाज को लेकर तीखे तेवर भी अपनाए। खाली पदों की पूर्ति कर बेरोजगारों को राहत दी तो प्रशासनिक ढांचे को सुसंगत बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ाए। सुशासन  को लेकर लापरवाह को तत्काल दंडित किया गया तो श्रेष्ठ काम करने वाले सराहे भी गए।

** दबाव से परे कामकाज
      प्रशासन हो या पुलिस,शीर्ष स्तर पर सर्वश्रेष्ठ का चयन कर डॉ यादव ने अपनी गहरी प्रशासनिक समझ को भी उजागर किया है। शुरुआती दौर में ही उन्होंने 1988 बैच की सीनियर अधिकारी वीरा राणा को प्रदेश की दूसरी महिला मुख्य सचिव बनाकर नारी शक्ति के प्रति अपने सम्मान को उजागर किया। यही नहीं,अगली जमावट के लिए राणा के कार्यकाल में छह माह की सेवावृद्धि भी की तो सेवानिवृत्ति उपरांत उनकी महत्वाकांक्षा को नजरअंदाज भी किया।

    कैबिनेट बैठक में अफसरों की बैठक व्यवस्था में बदलाव,ताकतवर बने रेरा अध्यक्ष को आइना दिखाना,संवैधानिक पदों पर चुनिंदा नियुक्ति से पहले गहन मंथन व सियासी दबाव के बावजूद निगम,मंडलों में चुनिंदा नियुक्ति,नगरीय निकाय अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव व्यवस्था में बदलाव की तैयारी,यह दर्शाने के लिए काफी हैं कि तमाम व्यस्तताओं के बावजूद डॉ यादव तनाव मुक्त रहकर काम करना जानते हैं। ब्यूरोक्रेसी या सियासी दबाव उन्हें विचलित नहीं कर सकते और नाइंसाफी उन्हें पसंद नहीं।

**  पार्टी के लिए बने शुभंकर
  साल भर पहले जब विधायकों की तीसरी पंक्ति में बैठे डॉ यादव का नाम नए मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित हुआ तो यह नाम आमजन ही नहीं राजनीतिक पंडितों के लिए भी चौंकाने वाला था।
तब 17 साल के अनुभवी मुख्यमंत्री की तुलना में किसी नए चेहरे को प्रदेश की कमान सौंपे जाने के फैसले को लेकर कई सवाल भी उठे,लेकिन महज एक साल में डॉ यादव ने हर क्षेत्र में गहरी समझ व सहज ,सरल कार्यशैली से ऐसे हर सवाल का बखूबी जवाब दिया। यही नहीं,कठोर परिश्रम से संगठनात्मक स्तर पर भी वह अपना कद बढ़ाने में सफल रहे।

** सियासत में बढ़ा कद
     डॉ यादव आज  बीजेपी के बड़े स्टार प्रचारक हैं। जिनकी मांग प्राय: हर राज्य के चुनाव में है। उनके ओजस्वी व सहज,सरल भाषण मप्र ही नहीं,दूसरे राज्यों के मतदाताओं को भी लुभाते हैं। नतीजतन,हरियाणा हो, झारखंड या महाराष्ट्र, डॉ यादव का सक्सेस रेट 80 फीसद से अधिक है।
   उनके प्रचार वाले सभी क्षेत्रों में पार्टी को मिली जीत से वह अपने दल के लिए एक नए शुभंकर बनकर उभरे। संगठन के काम में न ज्यादा हस्तक्षेप ,न दूरी। न किसी से अपेक्षा ,न किसी की उपेक्षा। इस शैली से मप्र में भी अपनी पार्टी से उनका तालमेल बेहतर रहा।

** चेहरे पर मोहक मुस्कान
     शीर्ष पर पहुंचने से ज्यादा मुश्किल होता है,इस पर बने रहना। मुख्यमंत्री के पद को कांटों भरा ताज कहा गया है। जहां काम का बोझ व तनाव कम नहीं। बावजूद इसके डॉ यादव के हर भाषण,कार्यकलाप पर गौर करें तो वह सदैव हंसमुख,सहज व आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण नजर आए।
    बीते एक साल के दौरान डॉ यादव ने अपने पिता व काकी को खोया तो अपने बेटे का विवाह भी किया लेकिन निजी व पारिवारिक दायित्वों को सार्वजनिक जीवन की जिम्मेदारियों में आड़े नहीं आने दिया। उनकी यही खूबी,उन्हें औरों से अलग ठहराती है।